Thursday, April 10, 2008

मंजिल

तलाश रहा हूँ जिस मंजिल को,
उसके राही और भी हैं;
खीच रहा हूँ जिस कश्ती को,
उसके मांझी और भी है;
देख रहा हूँ जिन सपनो को,
वो किसी और की आंखों में भी हैं;
सोच रहा हूँ जिस भविष्य की,
उसके अभिलाषी और भी है;
तड़प रहा हूँ जिस दुख से में,
उसके भागी और भी हैं;
बन्ध चुका हूँ जिस बन्धन में,
उसके कैदी और भी है;
फिर भी ख़ुद पर है यकीन ये,
इस दौड़ में जीतूँगा में ही;
गर मेहनत करू निरंतर निशदिन,
कामयाबियां आगे और भी है..................

2 comments:

jaya said...

it inspires us 2 mov forward in lif.

J said...

actually kuch missing lag raha hai! agar kuch aur problems hoti aur fir sabke liye kuch aur inspiring lines hoti last me to shayad better hota!